परिचय
- यह पाठ
लेखक की आत्मकथा ‘नंगातलाई’ का एक अंश है |
- इसमे लेखक ने प्रकृति के साथ मनुष्य के संबंधों
के बारे मे बताया है |
- यह पाठ हमे ग्रामीण जीवन के बारे मे भी बताएगा |
- इस पाठ मे गाँव का नाम – बिस्कोहर है |
- प्रस्तुत
पाठ में लेखक अपने गाँव तथा वहाँ के प्राकृतिक परिवेश, ग्रामीण जीवनशैली, गांवों में प्रचलित घरेलू उपचार तथा अपनी माँ से जुड़ी यादों का वर्णन
करता है।
कोइयाँ
- कोइयाँ एक प्रकार का जलपुष्प है। इसे कुमुद और कोकाबेली भी कहते हैं।
- शरद ऋतु
में जहाँ भी पानी एकत्रित होता है, कोइयाँ फूल उग जाता है।
- शरद की चाँदनी में कोइयाँ की पत्तियाँ तथा उजली चाँदनी एक सी लगती है।
- इस पुष्प की गंध अत्यंत मादक होती है।
- लेखक के अनुसार बच्चे का माँ से संबंध भी अद्भुत होता है।
- बच्चा जन्म लेते ही माँ के दूध को भोजन के रूप में ग्रहण करता हैं नवजात शिशु के लिए दूध अमृत के समान हैं।
- बच्चा माँ से सिर्फ दूध ही ग्रहण नहीं करता, उससे संस्कार भी ग्रहण करता है
जो उसके चरित्र तथा व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं।
माँ का
दूध
- बच्चा
सुबकता है, रोता है, माँ को मारता है। माँ भी कभी-कभी मारती है
फिर भी बच्चा माँ से चिपटा रहता है।
- बच्चा माँ के पेट से गंध स्पर्श भोगता है। बच्चा दाँत निकलने पर टीसता है अर्थात् हर चीज़ को दाँत से काटता है।
- चाँदनी रात में खटिया पर बैठकर जब माँ बच्चे को दूध पिलाती है, तब बच्चा दूध के साथ-साथ चाँदनी के आनंद को महसूस करता है अर्थात् चाँदनी माँ के समान स्नेह, आनंद तथा ममता देती है |
बिसनाथ पर अत्याचार
- बिसनाथ अभी माँ का दूध पीता था कि उसके छोटे भाई का जन्म हो गया ।
- माँ के दूध पर छोटे भाई का अधिकार हो गया। बिसनाथ का दूध छूट गया।
- बिसनाथ को उनके तीन साल होने तक पड़ोस की कसेरिन दाई ने पाला।
- माँ का स्थान दाई ने ले लिया। यह बिसनाथ पर अत्याचार हुआ।
दिलशाद गार्डन मे बतख
- दिलशाद गार्डन में लेखक बतखों को देखता है।
- बत्तख अंडे देने के समय पानी छोड़कर जमीन पर आ जाती है।
- लेखक ने एक बत्तख को कई अंडों को सेते देखा ।
- लेखक को बत्तख माँ तथा मानव शिशु माँ में कई समानताएँ दिखीं। जिस प्रकार बत्तख पंख फैलाकर अंडों को दुनिया की नज़रों से बचाकर रखती है।
- अपनी पैनी
चोंच से सतर्कता से कोमलता से अपने पंखों के अंदर छिपा कर रखती है, हमेशा निगाह कौवे की ताक पर
रखती है उसी प्रकार मानव शिशु की माँ भी अपने बच्चों को दुनिया की नज़रों से बचाती
है, उन पर आने वाली मुसीबत को भाँपकर उनकी रक्षा करती है।
लू और
उपचार
- गर्मियों की दोपहर में लेखक घर से चुपचाप बाहर निकल जाता था।
- लू से बचने के लिए माँ धोती या कमीज से गाँठ लगाकर प्याज बाँध देती।
- लू लगने
पर कच्चे आम का पन्ना पिया जाता, आम को भूनकर या उबालकर गुड़ या चीनी में उसका शरबत पिया जाता,
उसे देह में लेपा जाता था, नहाया जाता तथा
उससे सिर धोया जाता था।
बिस्कोहर
मे बरसात
- बिस्कोहर में बरसात आने से पहले बादल ऐसे घिरते थे कि दिन में ही अंधेरा हो जाता था।
- बरसात कई दिन तक होती थी जिसके कारण कच्चे घरों की दीवारें गिर जाती थीं तथा घर धँस जाता था।
- बरसात आने
पर पशु-पक्षी सभी पुलकित हो उठते हैं। बरसात में कई कीड़े भी निकल आते हैं। उमस के
कारण मछलियाँ मरने लगती पहली बारिश में दाद-खाज, फोड़ा फुंसी ठीक हो जाते हैं।
गाँव के
सांप
- मैदानों, खेतों तथा तालाबों में कई
प्रकार के साँप होते हैं। साँप को देखने में डर तथा रोमांच दोनों है।
- डोडहा ओर मजगिदवा विषहीन होते हैं। डोडहा को वामन जाति का मानकर मारा नहीं जाता । धामिन भी विषहीन है।
- घोर कड़ाइच, भटिहा तथा गेंहुअन खतरनाक है जिसमें से सबसे अधिक गेंहुअन खतरनाक है जिसे फेंटारा भी कहते हैं।
फूल और
दवा
- गाँव में लोग प्रकृति के बहुत निकट हैं। लेखक के अनुसार फूल केवल गंध ही नहीं देते दवा भी करते हैं क्योंकि गांव में कई रोगों का इलाज फूलों द्वारा किया जाता है।
- फूलों की गंध से महामारी, देवी, चुडैल
आदि का संबंध जोड़ा जाता है। गुड़हल के फूल को देवी का फूल मानते हैं।
- बेर के
फूल सूंघने से बरें, ततैया का डंक झड़ता है। आम के फूल कई रोगों के उपचार में काम आते हैं। नीम
के पत्ते और फूल चेचक में रोगी के समीप रखते हैं।
प्रकृति
और नारी
- अपने एक
रिश्तेदार के घर लेखक ने एक अपनी उम्र से बड़ी औरत, देखी जिसकी सुन्दरता लेखक के
हृदय में बस गई। लेखक को प्रकृति के समान ही वह औरत आकर्षक लगी।
- प्रकृति के समस्त दृश्यों, जूही की लता, चाँदनी की छटा, फूलों की खूशबू में उन्हें वह औरत
नज़र आने लगी। लेखक को लगा, सुन्दर प्रकृति नारी के सजीव रूप
में आ गई हो।लेखक जिस औरत को देखकर समस्त प्रकृति के सौन्दर्य को भूल गया उससे
अपनी भावनाओं का इज़हार न कर सका।
- वह सफेद
रंग की साड़ी पहने रहती है, आँखों में एक व्यथा लिए दिखती है।
- वह इंतजार
करती हुई दिखती है। लेखक के लिए वह संगीत, मूति, नृत्य आदि कला
के हर अस्वाद में मौजूद है । लेखक के लिए हर सुख - दुःख से जोड़ने की सेतु है ।
- उसे नारी
प्रकृति की तरह ही लगी |